यूरोप में एक देश रोमानिया है। क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश से कम, जनसंख्या करीब 2 करोड़। रोमानिया यूरोप में एक खास मामले में सबसे ऊपर है। नैटो (NATO) उसे जर्मनी से भी बड़ा मिलिट्री बेस बनाने में लगा है। अमेरिका और ब्रिटेन समुद्र के रास्ते पिछले तीन सालों से वहां हथियार यहां पहुंचाते रहे हैं। यही हथियार रूस के खिलाफ जंग में यूक्रेन की मदद करते हैं। NATO और रूस एक-दूसरे के आमने-सामने ना पड़ जाएं और यूक्रेन युद्ध फैल न जाए, यह सुनिश्चित करने में रोमानिया काफी काम आता है।
तुरुप का पत्ता
अगर आप रोमानिया के मैप पर निगाह डालें तो देखेंगे कि NATO का यह मिलिट्री बेस क्राइमिया की बिलकुल नाक की सीध में पड़ता है। यानी रूस के दक्षिण में जो ब्लैक सी है, उसमें NATO का यह बेस एक तरह से तुरुप का पत्ता है। ब्लैक सी पूरे इतिहास में रूस के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। यहीं से मध्य एशिया पर भी रूस की पकड़ मजबूत होती है। उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान जैसे देश रूस के प्रभाव क्षेत्र में ही हैं।
ब्लैक सी की राह
रूस के बंदरगाह कड़ाके की सर्दी में बंद रहते हैं, पर वह ब्लैक सी के बंदरगाह से पूरे विश्व में व्यापार कर सकता है। आज की बात करें तो रूस की बीसियों गैस पाइपलाइनें यहां से जाती हैं। यानी रूस का पूरा ढांचा ब्लैक सी के बगैर गिर सकता है। इसलिए जब रूस की कैथरिन द ग्रेट ने 1783 में ऑटोमन एंपायर से क्राइमिया जीता, तो वह रूस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घड़ी थी।
नैटो की राजनीति
अब घड़ी को फास्ट फॉरवर्ड करते हैं। पिछले 25-30 सालों में ब्लैक सी के आसपास जितने भी देश हैं, NATO ने उन्हें एक तरह से अपने आप में शामिल कर लिया है, सिवाय यूक्रेन और जॉर्जिया के। जॉर्जिया में जब 2008 में तख्तापलट की कोशिश हुई, तो रूस ने हस्तक्षेप किया। ऐसे ही जब यूक्रेन के NATO में शामिल होने की बात गरमाई तो रूस ने तीन साल पहले अपने सैन्य दल के साथ यूक्रेन में प्रवेश किया।
रोमानिया के चुनाव
रोमानिया में पिछले नवंबर में चुनाव का पहला चरण हुआ। दूसरा चरण दिसंबर में होना था। पहले चरण के नतीजे अप्रत्याशित थे। Calin Georgescu से कोई उम्मीद नहीं थी पर उन्हें सबसे ज्यादा 23% वोट मिले। इस प्रत्याशी का चुनाव में मुख्य मुद्दा था कि वह रोमानिया को ना तो NATO और ना ही रूस की तरफ झुकने देंगे।
खतरे की घंटी
यह तो खतरे की घंटी थी। रोमानिया का जो इस्तेमाल NATO या अमेरिका कर रहे थे, उसमें व्यवधान आ सकता था। वहां हथियार भेजने पर रोक लग सकती थी। रूस की ब्लैक सी में घेराबंदी खटाई में पड़ सकती थी। रूस के व्यवसाय और गैस पाइपलाइन पर अड़ंगा लगाने का मौका हाथ से निकल सकता था।
पलट गए नतीजे
इसलिए इन शक्तियों ने कदम उठाया। आरोप यह लगाया कि रोमानिया के इस प्रत्याशी को बाहर से फंड किया गया है। ऐसे ही डॉनल्ड ट्रंप के पहले चुनाव जीतने में कहा गया था कि रूस ने फंड किया है। इसी आधार पर रोमानिया के सुप्रीम कोर्ट ने पहले चरण के नतीजों को खारिज कर दिया। और तो और, Calin Georgescu भी हिरासत में ले लिए गए।
यूरोप की राह
इन सब तारों को जोड़ें तो समझ में आएगा कि यूरोप किसलिए हर हाल में यूक्रेन युद्ध को चलने देना चाहता है। वह किसी भी हालत में ब्लैक सी में रूस को दबोचना चाहता है। वह चाहता है कि उसका व्यवसाय और गैस पाइपलाइन बरबाद हो, आतंकवादी उसे निशाना बना सकें। मध्य एशिया उसके प्रभुत्व से जाता रहे। इसलिए जब अमेरिका भी यूक्रेन से पल्ला झाड़ने के लिए तैयार है, यूरोपियन यूनियन इसके लिए तैयार नहीं हैं। भले ही इसके लिए उसे अमेरिका से विपरीत राह अपनानी पड़े।
डीप स्टेट की जड़
सवाल है कि यूरोपियन यूनियन क्यों लड़ाई जारी रखना चाहती है? दरअसल, यूरोप के नेता जिस तरह से गद्दी संभालते हैं, वह एक प्रॉसेस है। ये नेता छोटी उम्र से वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के चहेते बन जाते हैं। इस फोरम को ही डीप स्टेट माना जाता है। यहीं से वे नेता तैयार किए जाते हैं जो आगे जाकर अपने देश में गद्दी संभालें। बाद में वे वही करते हैं जो डीप स्टेट चाहता है। और डीप स्टेट की जरूरत इस समय यूक्रेन लड़ाई को जारी रखने की है। अगर रूस जीत गया, तो डीप स्टेट की जड़ें हिल जाएंगी। यानी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जो ताना बाना बुना है, वह बिखर जाएगा।
0 Comments