ताजा समाचार

20/recent/ticker-posts

बांग्लादेश की आजादी में भारत का योगदान काट दो… हिंदुओं का नरसंहार कराने वाले सुहरावर्दी को पढ़ाओ


बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्तापलट करने के मोहम्मद यूनुस की की अंतरिम सरकार ने वहाँ के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव शुरू कर दिया है। यूनुस सरकार के निर्देश पर बांग्लादेश के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्य-पुस्तक बोर्ड (NCBT) ने 2025 के शैक्षणिक वर्ष में स्कूली पाठ्यक्रमों से शेख मुजीबुर्रहमान से संबंधित लेखन को कम कर दिया है। मुजीबुर्रहमान निर्वासित पीएम हसीना के पिता थे।
मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक एवं प्रथम राष्ट्रपति थे। पाठ्य-पुस्तकों में उनसे संबंधित सामग्री को कम कर दिया गया है। जो हैं उन्हें फिर से लिखा गया है। जिन अध्यायों में पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम में उनके नेतृत्व को दिखाया गया था, उन्हें या तो हटा दिया गया है या स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े अन्य राजनीतिक व्यक्तियों को शामिल करते हुए उसे फिर से लिखा गया है।

हिंदू विरोधी और मुस्लिम लीग के नेताओं को जोड़ा

पुस्तकों में जिन अन्य राजनीतिक हस्तियों को शामिल किया गया है, उनमें मुस्लिम लीग पूर्व नेता मौलाना अब्दुल हामिद खान भशानी, अविभाजित बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री हिंदू विरोधी हुसैन सुहरावर्दी, मुस्लिम लीग के पूर्व नेता एवं पूर्वी पाकिस्तान के पीएम अबुल कासिम फजलुल हक और हसीना की प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया एवं उनके शौहर व पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान शामिल हैं।
बांग्लादेश की आजादी में मुजीबुर्रहमान के योगदान को भी घटा दिया गया है। ‘मुजीब माने मुक्ति (मुजीब का मतलब आजादी)’ को कक्षा 4 की बंगाली किताबों से हटा दिया गया है। वहीं, बांग्लादेश की आजादी की माँग को जियाउर रहमान के हवाले कर दिया गय है। नई पुस्तकों में कहा गया है कि तत्कालीन सेना प्रमुख ने 26 मार्च 1971 को चटगाँव से स्वतंत्रता की पहली घोषणा की थी।
इसमें आगे कहा गया है कि जियाउर रहमान की व्यक्तिगत घोषणा के अगले दिन 27 मार्च 1971 को मुजीब ने भी आजादी की घोषणा की थी। पिछली पुस्तकों में मुजीब को 26 मार्च 1971 को स्वतंत्रता की पहली घोषणा करने का श्रेय दिया गया था। इस तरह बंगबंधु कहलाने वाले मुजीबुर्रहमान के योगदान को कम करके इसे दूसरे के हवाले किया जा रहा है।

भारतीय योगदान को लेकर काट-छाँट

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पाठ्य-पुस्तकों में बांग्लादेश की आज़ादी में भारत के योगदान को रखा गया है, लेकिन तत्कालीन पीएम इंदिरा गाँधी के साथ मुजीबुर्रहमान की ऐतिहासिक तस्वीरें हटा दी गई हैं। इन दो तस्वीरों में एक 6 फ़रवरी 1972 को कोलकाता की एक रैली में दोनों के संयुक्त संबोधन की तस्वीर और 17 मार्च 1972 को ढाका में इंदिरा गाँधी के स्वागत की तस्वीर शामिल हैं।
हालाँकि, साल 1971 के युद्ध में भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी की भूमिका बरकरार रखी गई है। इसमें 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक तस्वीर शामिल है। इसके अलावा, पुस्तकों के नए संस्करणों में बांग्लादेश की स्वतंत्रता को सबसे पहले मान्यता देने वाले देश के रूप में भारत का नाम हटा दिया गय है। भारत जगह भूटान का नाम कर दिया गया है।
बांग्लादेश के संशोधित पाठ्य-पुस्तकों संस्करण में कहा गया है कि भूटान ने 3 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश की आजादी को मान्यता देने वाला पहला देश था। वहीं, मोहम्मद यूनुस की सरकार ने सभी पाठ्य-पुस्तक से शेख हसीना को पूरी तरह से हटा दिया गया है। इससे पहले के किताबों में पिछले कवर पेज पर शेख हसीना का छात्रों के लिए एक पारंपरिक संदेश छपा होता था।
उस पेज पर अब जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन की तस्वीरें छापी गई हैं, जो हसीना के खिलाफ शुरू की गई थीं। बांग्लादेश शिक्षा मंत्रालय द्वारा नियुक्त 57 विशेषज्ञों की एक टीम ने इन संशोधनों की रूपरेखा तैयार की है। इन संशोधनों को प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक छात्रों के लिए 441 पाठ्य-पुस्तकों में किया गया है। वर्तमान शैक्षणिक साल के 40 करोड़ से अधिक नई पुस्तकें छापी गई हैं।
पुस्तकों में शेख हसीना प्रशासन पर सत्ता बनाए रखने के लिए न्यायपालिका और सिविल सेवा का इस्तेमाल कर अनुचित चुनाव कराने का आरोप लगाया गया है। इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की नेता खालिदा जिया ने कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के खिलाफ लोगों से एकजुट होने का आग्रह किया है।


Post a Comment

0 Comments