रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर शरणार्थियों के लिए सुविधाओं की माँग की है। NGO ने याचिका में कहा कि कोर्ट केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दे कि दिल्ली में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं को स्कूलों और अस्पतालों तक पहुँच दी जाए। इस मामले की सुनवाई सोमवार (10 फरवरी) को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने की।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ को निर्देश दिया था कि वह कोर्ट को बताए कि दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थी कहाँ-कहाँ बसे हुए हैं और उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ मिली हुई हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ को स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश से वंचित रखा जाता है, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है।
कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, “वे शरणार्थी हैं, जिनके पास UNHCR (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) कार्ड हैं और इसलिए उनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकते। लेकिन, आधार कार्ड के अभाव में उन्हें सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि रोहिंग्या शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में झुग्गियों में और खजूरी खास में किराए के मकानों में रह रहे हैं।
बता दें कि इस एनजीओ द्वारा दायर याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकारों को निर्देश देने की माँग की गई है कि वे रोहिंग्या बच्चों को आधार कार्ड या भारतीय नागरिकता न होने के बावजूद मुफ्त शिक्षा दें। जनहित याचिका में आगे माँग की गई थी कि इन रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ को सरकार द्वारा पहचान पत्र माँगे बिना कक्षा 10, 12 और स्नातक सहित सभी परीक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए।
शिक्षा के अलावा, याचिका में इन रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए सरकारी अस्पतालों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ अंत्योदय अन्न योजना के तहत उपलब्ध सब्सिडी वाले खाद्यान्न देने की माँग की गई है। दरअसल, ये NGO और गोंजाल्विस चाहते हैं कि शरणार्थी के दर्जे वाले इन अवैध घुसपैठियों को भारत के एक नागरिक वाली हर सुविधा इन्हें मुफ्त में मिले।
कौन हैं गोंजाल्विस
अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) के संस्थापक हैं। यह सामाजिक-कानूनी सूचना केंद्र के तत्वावधान में काम करता है। इसे पहले जॉर्ज सोरोस के एनजीओ से फंड मिल चुका है। HRLN ने जिन प्रयासों में भाग लिया है, उनमें इस्कॉन के अक्षय पात्र के खिलाफ अभियान, भारतीय राजद्रोह कानूनों के खिलाफ अभियान और भारत में रोहिंग्या मुस्लिमों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना शामिल है।
यह RTE अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए सक्रियता में भी शामिल रहे हैं, जो हिंदू-संचालित संस्थानों के खिलाफ काम करता है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि गोंसाल्वेस के HRLN को 2020 के एंटी-सीएए दंगाइयों का अदालतों में बचाव करने के लिए चार यूरोपीय चर्चों से 50 करोड़ रुपए भी मिले। इसके अलावा, HRLN देश भर में कई ऐसे संगठनों से भी जुड़ा हुआ है जो भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर करना चाहते हैं।
रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (R4R)
रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स एनिशिएटिव की स्थापना साल 2017 में पंजीकृत किया गया था। इसे ग्लोबल स्टेटलेसनेस फंड (GSF) से धन प्राप्त होता है। GSF नीदरलैंड स्थित इंस्टीट्यूट ऑन स्टेटलेसनेस एंड इंक्लूजन की एक परियोजना है। इन्हें दुनिया भर में सत्ता गिराने के लिए कुख्यात हो चुके जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से धन प्राप्त होता है।
रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स एनिशिएटिव के शिक्षा और आंदोलन निर्माण निदेशक अली जौहर रिफ्यूजी इंटरनेशनल (आरआई) के पहले शरणार्थी फेलो कार्यक्रम में फेलो थे। अली जौहर (मौंग थीन श्वे) 2005 में भारत आए थे। वे मूल रूप से म्यांमार के रखाइन राज्य के रहने वाले हैं। आरआई के अध्यक्ष जेरेमी कोनइंडिक विवादास्पद यूएसएआईडी के पूर्व कर्मचारी हैं।
USAID मीडिया, एक्टिविस्ट, संदिग्ध अधिकार समूहों और यहाँ तक कि इस्लामी आतंकवादी संगठनों को फंड देता था। जेरेमी कोनइंडिक यूएसएआईडी के यूएस फॉरेन डिजास्टर असिस्टेंस के कार्यालय के निदेशक थे। ट्रम्प प्रशासन ने यूएसएआईडी को निष्क्रिय नहीं कर दिया है। अली जौहर फ्री रोहिंग्या गठबंधन का हिस्सा हैं। इस समूह को ग्लोबल स्टेटलेसनेस फंड से भी धन प्राप्त होता है।
0 Comments